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कविता

प्रतीक्षा

श्रीकांत वर्मा


दीख नहीं पड़ते हैं अश्वारोही लेकिन
सुन पड़ती है टाप;
- झेल रहा हूँ शाप।

 


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हिंदी समय में श्रीकांत वर्मा की रचनाएँ